मैं चल पड़ी हूँ
मैं चल पड़ी हूँ
उस मंजिल की और
ना कोई ठिकाना है
ना कोई उम्मीद है
फिर भी थोड़ी सी
जो हिम्मत हैं
उसी के बल पर
चल पड़ी हूँ
एक ऐसी राह पर
अकेली सी राह पर
जिसकी कोई मंजिल नही
पर बुलंद होने की आशा है
कि आज नहीं तो कल
कोई मंजिल मिले या ना मिले
ये ज़रूरी तो नहीं
पर ये एहसास और अफ़सोस
भी नहीं होगा कि
हमने कोशिश नहीं की
चल पड़ी हूँ मैं
उस राह पर
जिसका कोई ठिकाना नहीं
अंजू सिंह दिल्ली
Milind salve
21-Jan-2024 07:54 PM
Nice
Reply
Rupesh Kumar
21-Jan-2024 05:32 PM
Nice one
Reply
Alka jain
17-Jan-2024 06:08 PM
Nice
Reply